Wednesday, July 10, 2019

शूद्रों की बुद्धि और क्रूरता

शूद्रों के नेता यह नहीं बताते जो बाबा साहिब डॉ. भीमराव आंबेडकर जी ने कहा था कि शूद्रों की क्रूरता के कारण ही ब्राह्मणों ने उनके दमन के लिए कानून बनाए। आज भी शूद्र परिवार से लेकर समाज और राजनीति तक उसी क्रूरता से ग्रस्त हैं। इसी क्रूरता के कारण यह आज भी जातिवाद से ग्रस्त हैं और जाति के खेमों में बंटे हैं। इसी क्रूरता के कारण ये डॉ. आंबेडकर जी का भी अनुसरण नहीं कर पाते।

यह क्रूरता कोई गाय, सूअर या बकरे का मांस खाने या शराब पीने की वजह से नहीं है। बल्कि यह क्रूरता वर्षों तक भारत के राजा बने रहने के कारन हुई है। जब मनुस्मृति से पहले तक ये राजा थे। इसलिए इनमें एक क्रूर शासक की क्रूरता है, जिसका दमन दो हज़ार सालों के ब्राह्मण काल में, और इनके विरुद्ध कानून बना कर भी ख़त्म नहीं हो पाया। इनकी क्रूरता का आलम यह है कि जो इनके लिए अच्छा काम करता है ये उसे ही बुरा कहते हैं। इसका एक उदाहरण है कि जब डॉ. आंबेडकर जी इनके लिए अधिकार की लड़ाई लड़ रहे थे तो ये उनका ही विरोध कर रहे थे और आज उन्हीं की वजह से इन्हें सबकुछ मिला है। इनकी क्रूरता ही इनकी कम बुद्धि का सबूत है। इनकी कम बुद्धि का ही प्रमाण है कि ये आज तक उस धर्म को मानते हैं जो इनका दमन करता है।

शूद्रों की इस वंशानुगत क्रूरता को ये नियंत्रित नहीं कर पाएंगे तो कोई भी काम सही से नहीं कर सकते। वयापार, शासन और सत्ता क्रूरता से नहीं बल्कि कोमल बुद्धि से किए जाते हैं। इन्हें अपनी बुद्धि की उजड़ता को समाप्त करना होगा यदि कोई सकारात्मक काम करना है। मांस और शराब का सेवन तो अमरीका, यूरोप, ऑस्ट्रेलिया के लोग भी करते हैं, पर उन्होंने अपनी क्रूरता को नियंत्रित किया है। इसलिए क्रूरता को नियंत्रित करके बड़े साम्राज्य और विकसित तकनीक भी ईजाद की जा सकती है। 

शूद्रों की श्रेणी में सभी अनुसूचित जाति, जन जाति और आदिवासियों को रख सकते हैं।  जैसा की कुछ नेता इन्हें मूलनिवासी भी कहते हैं। मैं मूलनिवासी तो नहीं कहूंगा। पर इस सन्दर्भ में यह शब्द भी उचित है। क्रूरता को समझना बहुत जरुरी है। हम दूसरे की क्रूरता तो समझते हैं पर अपनी नहीं समझ पते।  क्या शूद्र डॉ. आंबेडकर जी या अपने संतों की सोच वाले बने हैं ? क्या ये शिक्षा की तरफ सही से बढ़े हैं जो डॉ. आंबेडकर जी के इतने प्रयासों के बाद इन्हें मिली है? क्या शिक्षित और धनवान होने के बाद ये व्यापर या समाज को एक करने की तरफ बढ़े हैं ? क्या राजनीति में इन्होंने आरक्षण के अवसर का लाभ उठाने के सिवा कुछ और किया है ? क्या इन्होंने आपजी जाति से ऊपर की राजनीति की है ? क्या इनके परिवारों में वह प्रजातान्त्रिक और न्याय के मूल्य हैं जो ये द्विज हिन्दुओं से मांगते हैं ? यह फहरिस्त लम्बी हो सकती है। पर इन सबका कारण क्रूरता ही है। और ये पहले अपनी इस क्रूरता को अपने परिवार और फिर अपने समाज पर ही निकालते हैं। यही क्रूरता इन्हें अपनों से अलग रखती है। क्रूरता ने इनकी आँखें बंद कर दी है। क्रूरता ने इनकी बुद्धि बंद कर दी है। यह कुँए के मेंढक की तरह बन गए हैं। ऐसे अंधे जो किसी दूसरे अंधे के कहे पर चलते हैं।

यदि डॉ. आंबेडकर जी के बताए बुद्ध के धम्म को जानते और समझते तो इनकी यह क्रूरता कम होती। पर यह ऐसे हैं कि बौद्ध बन कर भी करुणा को नहीं अपना पाते। यदि बुद्ध की करुणा का पालन करते तो इनकी बुद्धि के चक्षु खुलते। ये किसी और का कुछ नहीं बिगाड़ सकते जब ये पहले से अपना ही बिगाड़ रहे हैं। क्रूरता से जुड़ा है क्रोध, अज्ञानता और अभिमान। क्रूर किसी की नहीं सुनता, किसी की नहीं मानता, वह एक स्वार्थी पशु के सामान होता है। पशु को नियंत्रित किया जा सकता है पर क्रूरता से अंधे हुए व्यक्ति को नहीं। तुलसीदास ने कहा शूद्र है ताड़न (पिटाई) का अधिकारी। असल में किसी की पिटाई से नहीं बल्कि अपनी क्रूरता से शूद्र पिछड़े हैं। क्रूरता आपको जुड़ने नहीं देती। क्रूरता आपको समझदार बनने नहीं देती। क्रूरता आपको आगे बढ़ने नहीं देती। क्रूरता आपको दूसरों से अलग करती है।  इसलिए इस क्रूरता को समझने की जरुरत है और अपनी कमियों को दूर करने की जरुरत है।

मैं खुद अनुसूचित जाति से हूँ और इस क्रूरता को अनुभव  करता हूँ। यह मुझ में और मेरे आसपास, मेरे परिवार और रिश्तेदारों के आलावा अन्य शूद्र जातियों में भी देखता हूँ।  मैं चाहता हूँ कि शूद्रों का जीवन सुधरे। पर इसके लिए कोई और कितनी ही मदद करे, पहले खुद को सुधारना पड़ेगा, ऐसा मैं सोचता हूँ। डॉ. आंबेडकर जी के मिशन में मैं दस वर्षों से काम कर रहा हूँ। मैं दिन-रात विचारों में रहता हूँ कि कैसे शूद्र औरों के द्वारा भी और अपनों के द्वारा भी बेवकूफ बनाए जाते हैं। मैं डॉ. आंबेडकर जी के विचारों से इस सारे मसले को देखता हूँ। इसलिए मैंने शूद्रों की इस क्रूरता को चुना जो खुद डॉ. आंबेडकर जी ने बताई थी और जिसे शूद्रों के नेता नहीं बताते। - निखिल सबलानिया (शूद्रों का साहित्य इस वेबसाइट से खरीदें www.nspmart.com